दूध शाकाहार है या मांसाहार, वह आधुनिक युग के लोगो का सवाल हो सकता है, लेकिन अनादिकाल से आजमाया हुआ सत्य यही है कि दूध मांसाहार नहीं है. दूध की महाशक्ति शाकाहार की श्रेणी में आने वाला शुद्ध रसाहार है. स्तनधारी प्राणियों के जन्म से ही पोषण और तंदूरुस्ती के लिए कुदरत का दिया लाभदायक पेय है.
doodh pine ke fayde in hindi
एक आलेख में छपा था कि दुध तरल मांस है और उसके सेवन से एसिडिटी केल्शियम की कमी केंसर और गुर्दे की खराबी जैसी शिकायते होती है. ऐसा कहना सरासर गलत है. दूध से एसिडिटी नहीं होती, बल्कि एसिडिटी घटती है. इसका कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर प्रयोग करके देश सकता है. एसिडिटी हो रही हो, तो दूध में आधा या एक चौथाई पानी और मीठा मिलाकर उसे अच्छी तरह से उबालकर और फिर ठंडा करके पीये .
एसिडिटी और मुहँ तथा पेट के छाले समाप्त हो जायेंगे, इसके अलावा दूध की महाशक्ति से दूध से हड्डियाँ कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत होती है, दूध मधुर, स्निध, रुचिकर, स्वादिष्ट और वात पित्त नाशक होता है. यह वीर्य, बुद्धि और कफवर्धक होता है. शीतलता, ओज, स्फूर्ति और स्वास्थप्रदायक होता है. स्त्री और गाय का दूध गुण धर्म की दृष्टि से समान होता है. इसमें विटामिन ए और खनिज तत्व होते है, जो रोगों से लड़ने की ताकत (प्रतिरोधक क्षमता) प्रदान करते है और आखोँ का तेज बढ़ाते है. दूध एक पूर्ण आहार है. शरीर को पुष्ट और स्वस्थ रखने के लिए जितने तत्वों की जरूरत होती है. वे सभी उसमें पाए जाते है.
दूध रक्त नहीं है
दूध की महाशक्ति इसका सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रमाण तो यह है कि दूध में जो कैसिन नामक प्रोटीन मौजूद रहता है, वह खून और मांस में नहीं पाया जाता है. जो रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी आरबीसी) और प्लेटलेट्स खून में पाए जाते है, वे दूध में नहीं होते. यह बात वैज्ञानिको ने दूध का बेंजोइक टेस्ट करके बताई है. यह परिक्षण किसी भी पेथोलाजी लैब में किसी भी डॉक्टर से कराकर देखा जा सकता है. दूध एनीमल प्रोडक्ट होने पर भी रक्त मांस से बिलकुल अलग एक शुद्ध रस है.
कोई यह तर्क दे सकता है
कि दूध में वही प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा आदि तत्व पाए जाते है, जो खून में पाए जाते है, इसलिए दौनो एक है. लेकिन अगर यह तर्क सही है, तो वे सभी तत्व हरे या भिगोए हुए सोया, गेंहूँ चना आदि अनाज में भी पाए जाते है, लिहाजा उन्हें भी मांसाहार कहना पड़ेगा. जो कि सही नहीं होगा.
यह सही है कि जेनेटिक ब्लू प्रिंट के मुताबिक अपनी-अपनी प्रजाति की माँ का दूध सबसे अच्छा होता है, इसलिए गाय का बछड़ा गाय का दूध, बकरी का बच्चा बकरी का दूध, बिल्ली का बच्चा बिल्ली का दूध और शेरनी का बच्चा शेरनी का दुध पीता है. इस प्रकार सभी स्तनधारी प्राणियों की माए अपने बच्चो के पोषण और विकास के लिए दूध देती है. लेकिन यह भी सदियों से आजमाई हुई बात है कि जिन प्राणियों की माँ नहीं होती या दूध नहीं दे पाती, गाय उनकी माँ बन जाती है.
गाय के दूध की महाशक्ति सभी प्राणियों के अनुकूल पड़ता है
और पर्याप्त मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है. इसके विपरीत अन्य प्राणियों का दूध प्रतिकूल का दूध प्रतिकूल और अपर्याप्त होने से सभी के काम नही आता लेकिन याद रखे कि दूध माँ का हो या गाय का, उसका सेवन करने की एक निश्चित मात्रा होती है. यदि उससे अधिक ग्रहण किया जाएगा. तो हानि पहुचेगा. इसलिए हितमित भूख यानी थोड़ा और हितकारी भोजन करने को कहा गया है. अति तो हर चीज की बुरी होती है. यह कहकर भी दूध को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है, कि वह छह से आठ घंटे में पचता है. बहुत सी ऐसी शक्तिवर्धक चीजें (बादाम, काजू, मूंगफली, आदि) है. जिन्हें पचने में इससे ज्यादा लगता है.
doodh pine ke fayde in hindi
शिशु अवस्था में लेक्टास एंजाइम का पर्याप्त मात्र में स्त्राव होता है. वे ही एंजाइम दूध को पचाने है, इसलिए बच्चो का वह पूर्ण आहार होता है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढती जाती है, लेक्टास एंजाइम का स्त्राव घटता जाता है. फिर भी लगातार दूध पीने वालों को यह पचता रहता है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया में क्लिनिकल इम्युनोलोजी के प्रोफ़ेसर डॉ टयुबल का कहना है कि वयस्क आदतन दूध और उससे बने उत्पादों का सेवन करते है. उनके लेक्टास एंजाइम सक्रिय बने रहते है और दूध पचता रहता है, लेकिन जो बचपन के बाद दूध का सेवन बंद कर देते है, उनमे इस एंजाइम का संश्लेषण बंद कर देते है, उनमे इस एंजाइम का संश्लेषण बंद हो जाता है. ऐसे व्यक्तियों को दूध पीने के बाद डायरिया और पेट दर्द की शिकायत हो सकती है. लेकिन दूध नहीं पचा सकने वाली व्यक्ति अगर (चावल, रोटी आदि के साथ) थोडा-थोडा बढ़ाते हुए कर्म से दूध का सेवन करता है, तो एंजाइम की मात्रा सुधर जाती है और दूध पचने लगता है.
दूध इतना अधिक होता है कि उसे दुहा जाना जरुरी है. हानाह शोध संस्थान के डॉक्टर वाइल्ड का कहना है कि अगर दूध दुहा न जाए, तो स्तन ग्रन्थियों पर बुरा असर पड़ता है. इससे स्तन कोशिकाएं मरने लगती है. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए. कि बछड़े को पेटभर दूध मिले इंजेक्शन का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए.
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दूध का उपयोग अनादिकाल से हो रहा है. हमारे महापुरुष इसी अमृत को पीकर बड़े हुए इसलिए दूध के आलोचकों को न सिर्फ तथ्यों से, बल्कि परम्परा से भी सबक लेना चाहिए.
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